Shri Mahalakshmi Ashtak: श्रीमहालक्ष्मी अष्टक।

Shri Mahalakshmi Ashtak: श्रीमहालक्ष्मी अष्टक।

Shri Mahalakshmi Ashtak: श्रीमहालक्ष्मी अष्टक:-

दोहा- नमो मात कमलासनी, बिनवहु बारम्बार।

हर लीजे मम सकल दुख, करहु न मात अबार।।

सवैया- पंकज श्वेत सुआसन मात सुशोभित हो पदमासन मारे।

श्वेतहि वस्त्र विराजत है तन श्वेतहि श्वेत विभूषण भारे।

सोहत है शिर छत्र विशाल सुमुक्तन माल गले बिच डारे।

गोविन्द की यह आस महालक्ष्मी जु करो दुख दूर हमारे।

कुंचित है अलके झलके अति कानन कुंडल शोभित भारे।

है भृकुटी शुचि बिन्दु सुभाल बने नयनांबुज हैं छवि वारे।

चार भुजायें विराजत मात सराजत, नीरज हैं कर प्यारे।

गोविन्द की यह आस महालक्ष्मी जु करो दुख दूर हमारे।

फैल रही चहुँ ओर छटा तव तिनहु लोक भये उजियारे।

देव ऋषी मुनि ध्यान धरे गुणगान करे नित मात तिहारे।

कीर्ति अपार न पावत पार थके यश गायक वेद बिचारे।

गोविन्द की यह आस महालक्ष्मी जु करो दुख दूर हमारे।

टेर सुनी तुम दीनन की भवसागर से झट पार उतारे।

हो जगपाल कृपाल बड़ी निज भक्तन के तुम काज सँवारे।

छाय रहो यश मात तुम्हार महाप्रताप जहां बिच सारे।

गोविन्द की यह आस महालक्ष्मी जो करो दुख हमारे।

होय सहाय दया करि बेगि खड़ा कर जोरहिं दास पुकारे।

गोविन्द की यह आस महालक्ष्मी जु करो दुख दूर हमारे।

ध्यावत मात तुम्हें हर बार खड़ा तव सेवक शाम सकारे।

आवहुँ बेगि करो न अबार पुकार कहूँ करिये दुख न्यारे।

देहु कृपा करिये वरदान सदा सुख से अब होय गुजारे।

गोविन्द की यह आस महालक्ष्मी जो करो दुख दूर हमारे।

दोहा- अष्टक श्री महालक्ष्मी, पढ़ै सदा जो कोय।

निशदिन इस संसार में, लहै अमित फल होय।।

।। इति महालक्ष्मी अष्टक समाप्त।।

श्री महालक्ष्मी माता की जय।।

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